सोमवार, ११ जानेवारी, २०१६

एक सैरभैर प्रश्न वाऱ्यावर











एक सैरभैर | प्रश्न वाऱ्यावर |
उगा ताऱ्यावर | चित्र कोरे ||
मनीचे ओघळ | मनातच विरे |
प्रकाश भोवरे | पुंजकांचे ||
ओठीपोटी गोठी | दाटती अपार |
चंद्र अलवार | पाझरतो ||
कोण देतो काय | न ये कळून |
जीव व्याकुळून | स्तना लुचे ||
फुटलेला पान्हा | देही सांडतांना |
भरल्या दिशांना | मोह शुभ्र  ||
अरे मागु किती | भरूनही रिती |
विवरांची दाटी | अंतरात  ||
एक एक फुल | उमले शून्यात |
ग्रह गोलकात | जीवांकूर ||
भरला विक्रांत | सुखाने आकंठ  |
इंद्रायणी काठ | तारांगणी  ||

विक्रांत प्रभाकर तिकोणे
http://kavitesathikavita.blogspot.in/


कोणत्याही टिप्पण्‍या नाहीत:

टिप्पणी पोस्ट करा

मिच्छामी दुक्कडम ( जरा अवेळी )

मिच्छामी दुक्कडम (जरा अवेळी ) ****** वळवले दाम ठोठावले काम  मिटे आश्वासन कुठे वर्धमान ॥ तुझाच भरोसा आता तीर्थंकरा उणीव न यावी तु...