गुरुवार, ११ एप्रिल, २०२४

स्वामी समर्थ

श्रीस्वामी समर्थ
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स्वामी अक्कलकोट वाला
मैं हूं उनका चेला 
सर पर है आशीष उनके 
हो गया बेड़ा पार मेरा ॥

कौन जान सकता उनको 
छाती ठोककर भला 
उतर आया कैलाश से 
सांब सदाशिव भोला ॥

पाकर मिट्टी पदकमलों की 
संसार हो गया सुहाना 
और दृष्टिके अमृतकणसे
यही मोक्षमय  जीना ॥

कोटि-कोटि हाथो में
लेकर प्रेम प्रसाद 
दे दे प्रसन्न भक्तो को 
जब कर ले वह याद ॥

गया नही मै दूर कही
 हूं हमेशा यहॉ जिंदा 
व्याकुल मनसे पुकार लो
आऊंगा मैं ,उनका वादा ॥

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© डॉ.विक्रांत प्रभाकर तिकोणे 
https://kavitesathikavita.blogspot.com  .
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