श्रीस्वामी समर्थ
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स्वामी अक्कलकोट वाला
मैं हूं उनका चेला
सर पर है आशीष उनके
हो गया बेड़ा पार मेरा ॥
कौन जान सकता उनको
छाती ठोककर भला
उतर आया कैलाश से
सांब सदाशिव भोला ॥
पाकर मिट्टी पदकमलों की
संसार हो गया सुहाना
और दृष्टिके अमृतकणसे
यही मोक्षमय जीना ॥
कोटि-कोटि हाथो में
लेकर प्रेम प्रसाद
दे दे प्रसन्न भक्तो को
जब कर ले वह याद ॥
गया नही मै दूर कही
हूं हमेशा यहॉ जिंदा
व्याकुल मनसे पुकार लो
आऊंगा मैं ,उनका वादा ॥
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© डॉ.विक्रांत प्रभाकर तिकोणे
https://kavitesathikavita.blogspot.com .
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