शनिवार, २५ जून, २०२२

वह (भाषांतर की कोशीश

वह  (भाषांतर की कोशीश)
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वह थी शुभ गौर हिमालय सी 
और उसकी हंसी 
सुंदर अबोध खिलखिलाती  
आंखें थी  उसकी  शीतल तेजस्वी
वह किसी और दुनिया की थी ।

खुशियों के सागर में थी
जीवन की बहार में थी
जैसे कोई फलफूलों से भरी 
एक हरी-भरी लता थी ।

यश का झंकारता गाना थी 
प्रेम से भरा हुआ तराना थी 
हाथ जोड़कर उसके लिए  
खुशिया ,इंतजार मे खडी थी।

वह कोई स्वर्ग लोकसे थी 
सपनों के सुंदर देश से थी 
अणुरेणू में चिअर्स भरभरकर 
जिंदगी गुजर कर रही थी।

मगर उसका यह अचानक जाना 
जैसे कोई खेल अधूरा छोड़ जाना 
मन में उभर लाया 
एक गहन प्रश्नचिन्ह 
धुंडता हुआ मतलब जीवन का ।
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 डॉ.विक्रांत प्रभाकर तिकोणे 

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