गुरुवार, १५ सप्टेंबर, २०२२

खेल.


खेल
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गर मिलता हमको भी एक नेट 
और हात में एक भली सी बॅट 
यारों हम कुछ और होते 
सिफारिश नहीं होती टेस्टमें खेलने की
तो रणजी में दिखाई पड़ते l

जानते हैं हम कि टैलेंट 
हममें भी भरा पड़ा था l
पर क्या करें यारों हम को 
घर भी तो चलाना था।

खेल एक शौक होता है 
गरीबों के लिए 
या थोड़ा टाइम पास 
थके मनको रिझानें के लिए

उस रास्ते में पर खेल के
ताबाद बहुत बड़ी थी 
और जगह जगह पर नो एंट्री की 
बोर्ड लगी हुई थी 

देखा कई कई बार 
हमने फिर सोचा एक बार 
की मुडके भी नहीं देखेंगे 
यारो ,उसे अब की बार.


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© डॉ.विक्रांत प्रभाकर तिकोणे 
https://kavitesathikavita.blogspot.com 
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