बुधवार, ११ नोव्हेंबर, २०१५

| दत्त प्रेमसुख |






काय सांगू सखी | दत्त प्रेमसुख |
अलोट कौतुक | शब्द उणे ||
स्मरताच मनी | तात्काळ येवूनी |
आनंदाचा धनी | केले मज ||
सुकुमार देह | बैराग्याचा वेष |
जटाजुट केस | शोभिवंत ||
दुसरा भास्कर | जणू धरेवर |
कोंदाटे अपार | देह दीप्ती ||
लेवून रुद्राक्ष | खडावा पायात |
त्रिशूळ हातात | भिक्षापात्र ||
भस्माचिया रेषा | साऱ्या देहावर |
रूप दिगंबर | अवधूत ||
भगवे कौपिन | आवडी लेवून |
त्रिमूर्ती त्रिगुण | देहाकार ||
हरपले भान | मनाचे उन्मन |
 जाग ध्यान स्वप्न | एकाकार  ||

विक्रांत प्रभाकर
http://kavitesathikavita.blogspot.in/


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