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यारों के दिलदारों के टीकट आ रहे हैं ।
महफ़िलों के रंग सूने हो रहे हैं ।
तुम किस सुबह का इंतजार कर रहे हो?
चार पाँच पल बचे हैं मुफ्त गँवा रहे हो।
सोने से पहले, विक्रांत! थोड़ा-सा जाग लो।
वह चाँदनी ढूँढो अंदर और उसे गले लगा लो।
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© डॉ.विक्रांत प्रभाकर तिकोणे
https://kavitesathikavita.blogspot.com
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